सही शिक्षा क्या है
शिक्षा मानव को एक अच्छा इंसान बनाती है। शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं। इस प्रकार यह कौशलों (skills), व्यापारों या व्यवसायों एवं मानसिक, नैतिक और सौन्दर्यविषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित है।[1]
शिक्षा, समाज एक पीढ़ी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। इस विचार से शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। बच्चा शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, समाज के प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है।
शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया।
जब हम शिक्षा शब्द के प्रयोग को देखते हैं तो मोटे तौर पर यह दो रूपों में प्रयोग में लाया जाता है, व्यापक रूप में तथा संकुचित रूप में। व्यापक अर्थ में शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। मनुष्य क्षण-प्रतिक्षण नए-नए अनुभव प्राप्त करता है व करवाता है, जिससे उसका दिन-प्रतिदन का व्यवहार प्रभावित होता है। उसका यह सीखना-सिखाना विभिन्न समूहों, उत्सवों, पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन आदि से अनौपचारिक रूप से होता है। यही सीखना-सिखाना शिक्षा के व्यापक तथा विस्तृत रूप में आते हैं। संकुचित अर्थ में शिक्षा किसी समाज में एक निश्चित समय तथा निश्चित स्थानों (विद्यालय, महाविद्यालय) में सुनियोजित ढंग से चलने वाली एक सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा विद्यार्थी निश्चित पाठ्यक्रम को पढ़कर संबंधित परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना सीखता है।
संसार के अधिकतर लोग अंधविश्वास और मान्यताओं के कारण पुण्य-पाप और सही-गलत के भय में भ्रमित जीवन जी रहे हैं जिसके कारण उनके दैनिक कर्मों में अनेकों प्रकार की त्रुटियाँ हो रही है और उनका जीवन दिन-प्रतिदिन अधिक संघर्षमयी हो रहा है | व्यक्ति को पुस्तकों और इन्टरनेट पर सरलता से सभी प्रकार की जानकारी मिलती है परन्तु यह जानकारी सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है क्योंकि इसमें व्यक्ति को आध्यात्मिक प्रश्नों का उत्तर नहीं मिलता है |
कुछ मुख्य प्रश्न इस प्रकार है :- 1 परमात्मा साकार है या निराकार?
2 हम देवी देवताओं की इतनी भक्ति करते हैं फिर भी दुखी क्यों है?
3 शास्त्रों में किस प्रभु की भक्ति सर्व श्रेष्ठ बताई है?
4 पवित्र गीता जी में बताए अनुसार वह तत्वदर्शी संत कौन है?
5 पवित्र गीता ज्ञानदाता अपने से अन्य किसकी शरण में जाने को कह रहा है? आदि!
अपने भय और भ्रम से मुक्ति के लिए सभी को ऐसे सटीक ज्ञान एवं तार्किक दृष्टि की आवश्यकता है जो उन्हें अभी तक अन्य किसी भी प्रसिद्ध पुस्तक अथवा व्यक्ति द्वारा प्राप्त नहीं है केवल संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान के अलावा।
पवित्र पुस्तक जीने की राह व ज्ञान गंगा अवश्य पढ़ें।
Comments
Post a Comment