दुशरी
"DivinePlay_Of_GodKabir"
दूसरी बात :- मृत्यु के पश्चात् की गई सर्व क्रियाऐं गति (मोक्ष) कराने केउद्देश्य से की गई थी। उन ज्ञानहीन गुरूओं ने अन्त में कौवा बनवाकर छोड़ा। वहप्रेत शिला पर प्रेत योनि भोग रहा है। पीछे से गुरू और कौवा मौज से भोजन कररहा है। पिण्ड भराने का लाभ बताया है कि प्रेत योनि छूट जाती है। मान लें प्रेतयोनि छूट गई। फिर वह गधा या बैल बन गया तो क्या गति कराई?नर से फिर पशुवा कीजै, गधा, बैल बनाई।छप्पन भोग कहाँ मन बौरे, कहीं कुरड़ी चरने जाई।।भावार्थ :- मनुष्य जीवन में हम कितने अच्छे अर्थात् 56 प्रकार के भोजन खातेहैं। भक्ति न करने से या शास्त्राविरूद्ध साधना करने से गधा बनेगा, फिर ये छप्पनप्रकार के भोजन कहाँ प्राप्त होंगे, कहीं कुरडि़यों (रूड़ी) पर पेट भरने के लिए घासखाने जाएगा। इसी प्रकार बैल आदि-आदि पशुओं की योनियों में कष्ट पर कष्टउठाएगा।जै सतगुरू की संगत करते, सकल कर्म कटि जाईं।अमर पुरि पर आसन होते, जहाँ धूप न छाँइ।।भावार्थ :- सन्त गरीब दास ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त सूक्ष्मवेद में आगेकहा है कि यदि सतगुरू (तत्वदर्शी सन्त) की शरण में जाकर दीक्षा लेते तोउपरोक्त सर्व कर्मों के कष्ट कट जाते अर्थात् न प्रेत बनते, न गधा, न बैल बनते।अमरपुरी पर आसन होता अर्थात् गीता अध्याय 18 श्लोक 62 तथा अध्याय 15श्लोक 4 में वर्णित सनातन परम धाम प्राप्त होता, परम शान्ति प्राप्त हो जाती। फिरकभी लौटकर संसार में नहीं आते अर्थात् जन्म-मरण का कष्टदायक चक्र सदा केलिए समाप्त हो जाता। उस अमर लोक (सत्यलोक) में धूप-छाया नहीं है अर्थात्जैसे धूप दुःखदाई हुई तो छाया की आवश्यकता पड़ी। उस सत्यलोक में केवल सुख है,दुःख नहीं है।सुरत निरत मन पवन पयाना, शब्दै शब्द समाई।गरीब दास गलतान महल में, मिले कबीर गोसांई।।भावार्थ :- सन्त गरीबदास जी ने कहा है कि मुझे कबीर परमेश्वर मिले हैं।
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