गीता सार

”श्रीमद् भगवत् गीता सार“
परमेश्वर की खोज में आत्मा युगों से लगी है। जैसे प्यासे को जल की चाहहोती है। जीवात्मा परमात्मा से बिछुड़ने के पश्चात् महा कष्ट झेल रही है। जो सुखपूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) के सतलोक (ऋतधाम) में था, वह सुख यहाँ काल (ब्रह्म) प्रभुके लोक में नहीं है। चाहे कोई करोड़पति है, चाहे पृथ्वीपति(सर्व पृथ्वी का राजा)है, चाहे सुरपति(स्वर्ग का राजा इन्द्र) है, चाहे श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिवत्रिलोकपति हैं। क्योंकि जन्म तथा मृत्यु तथा किये कर्म का भोग अवश्य ही प्राप्तहोता है (प्रमाण गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5)। इसीलिए पवित्राश्रीमद् भगवद् गीता के ज्ञान दाता प्रभु (काल भगवान) ने अध्याय 15 श्लोक 1 से4 तथा अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि अर्जुन सर्व भाव से उस परमेश्वर कीशरण में जा। उसकी कृपा से ही तू परम शांति को तथा सतलोक (शाश्वतम्स्थानम्) को प्राप्त होगा। उस परमेश्वर के तत्व ज्ञान व भक्ति मार्ग को मैं (गीताज्ञान दाता) नहीं जानता। उस तत्व ज्ञान को तत्वदर्शी संतों के पास जा कर उनकोदण्डवत प्रणाम कर तथा विनम्र भाव से प्रश्न कर, तब वे तत्वदृष्टा संत आपकोपरमेश्वर का तत्व ज्ञान बताएंगे। फिर उनके बताए भक्ति मार्ग पर सर्व भाव से लगजा (प्रमाण गीता अध्याय 4 श्लोक 34)। तत्वदर्शी संत की पहचान गीता अध्याय15 श्लोक 1 में बताते हुए कहा है कि यह संसार उल्टे लटके हुए वृक्ष की तरहहै। जिसकी ऊपर को मूल तथा नीचे को शाखा है। जो इस संसार रूपी वृक्ष केविषय में जानता है वह तत्वदर्शी संत है। गीता अध्याय 15 श्लोक 2 से 4 में कहा
है कि उस संसार रूपी वृक्ष की तीनों गुण (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव)रूपी शाखा है। जो (स्वर्ग लोक, पाताल लोक तथा पृथ्वी लोक) तीनों लोकों मेंऊपर तथा नीचे फैली हैं। उस संसार रूपी उल्टे लटके हुए वृक्ष के विषय में अर्थात्सृष्टी रचना के बारे में मैं इस गीता जी के ज्ञान में नहीं बता पाऊंगा। यहां विचारकाल में (गीता ज्ञान) जो ज्ञान आपको बता रहा हूँ यह पूर्ण ज्ञान नहीं है। उसकेलिए गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में संकेत किया है जिसमें कहा है कि पूर्ण ज्ञान(तत्व ज्ञान) के लिए तत्वदर्शी संत के पास जा, वही बताएंगे। मुझे पूर्ण ज्ञान नहींहै। गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी संत की प्राप्ति के पश्चात्उस परमपद 
परमेश्वर (जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है)की खोज करनी चाहिए। जहां जाने के पश्चात् साधक पुनर् लौटकर वापिस नहींआता अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है। जिस पूर्ण परमात्मा से उल्टे संसार रूपीवृक्ष की प्रवृत्ति विस्तार को प्राप्त हुई है। भावार्थ है कि जिस परमेश्वर ने सर्वब्रह्मण्डों की रचना की है तथा मैं (गीता ज्ञान दाता ब्रह्म) भी उसी आदि पुरुषपरमेश्वर अर्थात् पूर्ण परमात्मा की शरण हूँ। उसकी साधना करने से अनादि मोक्ष(पूर्ण मोक्ष) प्राप्त होता है।तत्वदर्शी संत वही है जो ऊपर को मूल तथा नीचे को तीनों गुण (रजगुण-ब्रह्मजी, सतगुण-विष्णु जी तथा तमगुण शिवजी) रूपी शाखाओं तथा तना व मोटी डारकी पूर्ण जानकारी प्रदान करता है। (कृप्या देखें उल्टा लटका हुआ संसार रूपी वृक्षका चित्रा)अपने द्वारा रची सृष्टी का पूर्ण ज्ञान (तत्वज्ञान) स्वयं ही पूर्ण परमात्माकविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने तत्वदर्शी संत की भूमिका करके (कविर्गीर्भिः) कबीरवाणी द्वारा बताया है (प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्रा 16 से 20 तक तथाऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 90 मंत्रा 1 से 5 तथा अथर्ववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मंत्रा1 से 7 में)।कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड़ है, ज्योति निरंजन वाकी डार। तीनों देवा शाखा हैं, पात रूप संसार।।पवित्रा गीता जी में भी तीन प्रभुओं (1. क्षर पुरुष अर्थात् ब्रह्म, 2. अक्षर पुरुषअर्थात् परब्रह्म तथा 3. परम अक्षर पुरुष अर्थात् पूर्णब्रह्म) के विषय में वर्णन है। प्रमाणगीता अध्याय 15 श्लोक 16.17, अध्याय 8 श्लोक 1 का उत्तर श्लोक 3 में है वह परमअक्षर ब्रह्म है तथा तीन प्रभुओं का एक और प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 25 में गीताज्ञान दाता काल 
(ब्रह्म) ने अपने विषय में कहा है कि मैं अव्यक्त हूँ। यह प्रथम अव्यक्तप्रभु हुआ। फिर गीता अध्याय 8 श्लोक 18 में कहा है कि यह संसार दिन के समयअव्यक्त(परब्रह्म) से उत्पन्न हुआ है। फिर रात्रा के समय उसी में लीन हो जाता है।यह दूसरा अव्यक्त हुआ। अध्याय 8 श्लोक 20 में कहा है कि उस अव्यक्त से भीदूसरा जो 

अव्यक्त(पूर्णब्रह्म) है वह परम दिव्य पुरुष सर्व प्राणियों के नष्ट होने पर भीनष्ट नहीं होता। यह तीसरा अव्यक्त हुआ। यही प्रमाण गीता अध्याय 2 श्लोक

Comments

Popular posts from this blog

कबीर प्रकट दिवस14जून

कुरान

Adham