सच्चा परमात्मा कबीर है

‘‘कबीर जी ही सतपुरूष हैं’’भावार्थ :- 
यह फोटोकॉपी कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 58 की है।सत्यलोक में जहाँ तक दृष्टि गई, धर्मदास जी ने देखा कि प्रकाश झलक रहा था। 

परमेश्वर(सत्य पुरूष) के दरबार के द्वार पर एक द्वारपाल (सन्तरी) खड़ा था। उसको जिन्दा रूपमें नीचे से गए प्रभु ने कहा कि यह भक्त परमेश्वर जी के दर्शन करने मृतलोक से आयाहै, इसको प्रभु के दर्शन कराओ। जिन्दा वेशधारी परमेश्वर बाहर ही बैठ गए थे। द्वारपाल
ने एक अन्य हंस (सत्यलोक में भक्त को हंस तथा भक्तमती को हंसनी कहते हैं) से कहा किआप इस भक्त को सत्यपुरूष के दर्शन कराओ। जब वह हंस धर्मदास जी को दर्शन के लिएलेकर चला तो बहुत सारे हंस आ गए और धर्मदास जी का स्वागत करते हुए नाचते हुएआगे-आगे चले। उनका शरीर विशाल था, गले में रत्नों की माला थी। उनके नाक, मुख,गर्दन की शोभा अनोखी थी। सोलह सूर्यों जितना शरीर का प्रकाश था। उनके रोम (शरीरके बाल) की चमक रत्न (हीरे) जितनी थी। उनका 
शरीर अमर (अविनाशी) है। सब मिलकरपुरूष दरबार में गए। सत्यपुरूष जी सिंहासन पर बैठे थे। उनके एक रोम का प्रकाश करोड़चन्द्रमाओं तथा सूर्यों जितना था। धर्मदास जी ने देखा कि ये तो वही चेहरा है जो नीचे जिन्दाबाबा के वेश में मिले थे तथा मुझे यहाँ लेकर आए हैं। धर्मदास जी बहुत लज्जित हुए औरविचार करने लगे कि नीचे मुझे विश्वास नहीं हुआ कि यह जिन्दा ही परमेश्वर हैं। दर्शनकरवाकर धर्मदास जी को वहीं लाया गया जहाँ जिन्दा रूप में प्रभु दरबार के बाहर बैठेछोड़कर अन्दर गया था।

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