गीता
KabirPrakatDiwasNotJayanti
24मुझे सुरत-निरत, मन तथा श्वांस पर ध्यान रखकर नाम का स्मरण करने की विधिबताई। जिस साधना से सतलोक में हो रही शब्द धुनि को पकड़कर सतलोक मेंचला गया। जिस कारण से सत्यलोक (शाश्वत स्थान) में अपने महल में आनन्दसे रहता हूँ क्योंकि सत्य साधना जो परमेश्वर कबीर जी ने सन्त गरीब दास कोजो बताई थी और उस स्थान (सत्यलोक) को गरीब दास जी परमेश्वर के साथजाकर देखकर आए थे। जिस कारण से विश्वास के साथ कहा कि मैं जोशास्त्रानुकूल साधना कर रहा हूँ, यह परमात्मा ने बताई है। जिस शब्द अर्थात् नामका जाप करने से मैं अवश्य पूर्ण मोक्ष प्राप्त करूँगा, इसमें कोई संशय नहीं रहा।जिस कारण से मैं (गरीब दास) सत्यलोक में बने अपने महल (विशाल घर) मेंजाऊँगा, जिस कारण से निश्चिन्त तथा गलतान (महल प्राप्ति की खुशी में मस्त)हूँ क्योंकि मुझे पूर्ण गुरू स्वयं परमात्मा कबीर जी अपने लोक से आकर मिले हैं।गरीब, अजब नगर में ले गए, हमको सतगुरू आन। झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।भावार्थ :- गरीबदास जी ने बताया है कि सतगुरू अर्थात् स्वयं परमेश्वरकबीर जी अपने निज धाम सत्यलोक से आकर मुझे साथ लेकर अजब (अद्भुत)नगर में अर्थात् सत्यलोक में बने शहर में ले गए। उस स्थान को आँखों देखकरमैं परमात्मा के बताए भक्ति मार्ग पर चल रहा हूँ। सत्यनाम, सारनाम की साधनाकर रहा हूँ।
इसलिए चादर तानकर सो रहा हूँ अर्थात् मेरे मोक्ष में कोई संदेह नहीं है।चादर तानकर सोना = निश्चिंत होकर रहना। जिसका कोई कार्य शेष नहो और कोई चादर ओढ़कर सो रहा हो तो गाँव में कहते है कि अच्छा चादरतानकर सो रहा है। क्या कोई कार्य नहीं है? इसी प्रकार गरीबदास जी ने कहाहै कि अब बडे़-बडे़ महल बनाना व्यर्थ लग रहा है। अब तो उस सत्यलोक में जाऐंगे।जहाँ बने बनाए विशाल भवन हैं, जिनको हम छोड़कर गलती करके यहाँ काल केमृत्यु लोक में आ गए हैं। अब दॉव लगा है। सत्य भक्ति मिली है तथा तत्वज्ञानमिला है।सज्जनों! वह सत्य
भक्ति वर्तमान में मेरे (रामपाल दास के) पास है। जिससेइस दुःखों के घर संसार से पार होकर वह परम शान्ति तथा शाश्वत स्थान(सनातन परम धाम) प्राप्त हो जाता है जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक62 में कहा है तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी सन्त सेतत्वज्ञान प्राप्त करके, उस तत्वज्ञान से अज्ञान का नाश करके, उसके पश्चात्परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए। जहाँ जाने के पश्चात् साधकफिर लौटकर संसार में कभी नहीं आता।
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