ज्ञान
17 में भी है कि नाश रहित उस परमात्मा को जान जिसका नाश करने में कोईसमर्थ नहीं है। अपने विषय में गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) प्रभु अध्याय 4 मंत्रा 5 तथाअध्याय 2 श्लोक 12 में कहा है कि मैं तो जन्म-मृत्यु में अर्थात् नाशवान हूँ।उपरोक्त संसार रूपी वृक्ष की मूल (जड़) तो परम अक्षर पुरुष अर्थात् पूर्णब्रह्म कविर्देव है। इसी को तीसरा अव्यक्त प्रभु कहा है। वृक्ष की मूल से ही सर्व पेड़को आहार प्राप्त होता है। इसीलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है किवास्तव में परमात्मा तो क्षर
पुरुष अर्थात् ब्रह्म तथा अक्षर पुरुष अर्थात् परब्रह्म सेभी अन्य ही है। जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है वहीवास्तव में अविनाशी है।1. क्षर का अर्थ है नाशवान। क्योंकि ब्रह्म अर्थात् गीता ज्ञान दाता ने तो स्वयंकहा है कि अर्जुन तू तथा मैं तो जन्म-मृत्यु में हैं (प्रमाण गीता अध्याय 2 श्लोक12, अध्याय 4 श्लोक 5 में)।2. अक्षर का अर्थ है अविनाशी। यहां परब्रह्म को भी स्थाई अर्थात् अविनाशीकहा है। परंतु यह भी वास्तव में अविनाशी नहीं है। यह चिर स्थाई है जैसे एकमिट्टी का प्याला है जो सफेद रंग का चाय पीने के काम आता है। वह तो गिरतेही टूट जाता है। ऐसी स्थिति ब्रह्म (काल अर्थात् क्षर पुरुष) की जानें। दूसरा प्यालाइस्पात (स्टील) का होता है। यह मिट्टी के प्याले की तुलना में अधिक स्थाई(अविनाशी) लगता है परंतु इसको भी जंग लगता है तथा नष्ट हो जाता है, भलेही समय ज्यादा लगे। इसलिए यह भी वास्तव में अविनाशी नहीं है। तीसरा प्यालासोने (स्वर्ण) का है। स्वर्ण धातु वास्तव में अविनाशी है जिसका नाश नहीं होता।जैसे परब्रह्म (अक्षर पुरुष) को अविनाशी भी कहा है तथा वास्तव में अविनाशीतो इन दोनों से अन्य है, इसलिए अक्षर पुरुष को अविनाशी भी नहीं कहा है ।कारण :- सात रजगुण ब्रह्मा की मृत्यु के पश्चात् एक सतगुण विष्णु की मृत्यु होतीहै। सात सतगुण विष्णु की मृत्यु के पश्चात् एक तमगुण शिव की मृत्यु होती है।जब तमगुण शिव की 70
हजार बार मृत्यु हो जाती है तब एक क्षर पुरुष (ब्रह्म)की मृत्यु होती है। यह परब्रह्म (अक्षर पुरुष) का एक युग होता है। एैसे एक हजारयुग का परब्रह्म का एक दिन तथा इतनी ही रात्रा होती है। तीस दिन रात का एकमहीना, बारह महीनों का एक वर्ष तथा सौ वर्ष की परब्रह्म (अक्षर पुरुष) की आयुहै। तब यह परब्रह्म तथा सर्व ब्रह्मण्ड जो सतलोक से नीचे के हैं नष्ट हो जाते हैं।कुछ समय उपरांत सर्व नीचे के ब्रह्मण्डों (ब्रह्म तथा परब्रह्म के लोकों) की रचनापूर्ण ब्रह्म अर्थात् परम अक्षर पुरुष करता है। इस प्रकार यह तत्व ज्ञान समझना है।परन्तु परम अक्षर पुरुष अर्थात् पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) तथा उसका सतलोक(ऋतधाम) सहित ऊपर के अलखलोक, अगम लोक तथा अनामी लोक कभी नष्टनहीं होते।इसीलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है कि वास्तव में उत्तम प्रभुअर्थात् पुरुषोत्तम तो ब्रह्म (क्षर पुरुष) तथा परब्रह्म (अक्षर पुरुष) से अन्य ही है जो
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