तीन देव्

“अन्य देवताओं (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुणशिवजी) की पूजा अनजान ही करते हैं”अध्याय 7 के श्लोक 20 में कहा है कि जिसका सम्बन्ध अध्याय 7 के श्लोक15 से लगातार है - श्लोक 15 में कहा है कि त्रिगुणमई माया (जो रजगुण ब्रह्माजी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी की पूजा तक सीमित हैं तथा इन्हीं से प्राप्तक्षणिक सुख) के द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है एैसे असुर स्वभाव को धारणकिए हुए नीच व्यक्ति दुष्कर्म करने वाले मूर्ख मुझे नहीं भजते। अध्याय 7 के श्लोक20 में उन-उन भोगों की कामना के कारण जिनका ज्ञान हरा जा चुका है वे अपनेस्वभाव वश प्रेरित हो कर अज्ञान अंधकार वाले नियम के आश्रित अन्य देवताओं कोपूजते हैं। अध्याय 7 के श्लोक 21 में कहा है कि जो-जो भक्त जिस-जिस देवता केस्वरूप को श्रद्धा से पूजना चाहता है उस-उस भक्त की श्रद्धा को मैं उसी देवता केप्रति स्थिर करता हूँ।अध्याय 7 के श्लोक 22 में कहा है कि वह जिस श्रद्धा से युक्त हो कर जिसदेवता का पूजन करता है क्यांकि उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किए हुए कुछइच्छित भोगों को प्राप्त करते हैं। जैसे मुख्य मन्त्रा कहे कि नीचे के अधिकारी मेरेही नौकर हैं। मैंनें उनको कुछ अधिकार दे रखे हैं जो उनके (अधिकारियों के) हीआश्रित हैं वह लाभ भी मेरे द्वारा ही दिया जाता है, परंतु पूर्ण लाभ नहीं है। अध्याय7 के श्लोक 23 में वर्णन है कि परंतु उन मंद बुद्धि वालों का वह फल नाशवानहोता है। देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं। (मदभक्त) मतावलम्बीजो वेदों में वर्णित भक्ति विधि अनुसार भक्ति करने वाले भक्त भी मुझको प्राप्त होतेहैं अर्थात् काल के जाल से कोई बाहर नहीं है।विशेष : अध्याय 7 के श्लोक 20 से 23 में कहा है कि वे जो भी साधना किसीभी पित्रा, भूत, देवी-देवता आदि की पूजा स्वभाव वश करते हैं। मैं (ब्रह्म-काल) हीउन मन्द बुद्धि लोगों (भक्तों) को उसी देवता के प्रति आसक्त
 करता हूँ। वे नादानसाधक देवताओं से जो लाभ पाते हैं मैंने (काल ने) ही देवताओं को कुछ शक्ति देरखी है। उसी के आधार पर उनके (देवताओं के) पूजारी देवताओं को प्राप्त होजाएंगे। परंतु उन बुद्धिहीन साधकों की वह पूजा चौरासी लाख योनियों में शीघ्र लेजाने वाली है तथा जो मुझे (काल को) भजते हैं वे तप्त शिला पर फिर मेरे महास्वर्ग(ब्रह्म लोक) में चले जाते हैं और उसके बाद जन्म-मरण में ही रहेंगे, मोक्ष प्राप्तनहीं होगा। भावार्थ है कि देवी-देवताओं व ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा माता से भगवानब्रह्म की साधना अधिक लाभदायक है। भले ही महास्वर्ग में गए साधक का स्वर्गसमय एक महाकल्प तक भी हो सकता है, परन्तु महास्वर्ग में शुभ कर्मों का सुखभोगकर फिर नरक तथा अन्य प्राणियों के शरीर में भी कष्ट बना रहेगा, पूर्ण मोक्षनहीं अर्थात् काल जाल से मुक्ति नहीं।

Comments

Popular posts from this blog

कबीर प्रकट दिवस14जून

कुरान

Adham