शिक्षा
संतों की शिक्षाएक गाँव का व्यक्ति पहली बार श्री नानक देव जी के पास गया। उसने देखाकि संत जी मायूस अवस्था में एकांत में बैठे थे।(स्मरण कर रहे थे) उस आदमीने सतनाम-वाहेगुरू बोला। श्री नानक जी ने भी उत्तर दिया। भोजन करवाया। ज्ञानविचार सुनाए। वह व्यक्ति चला गया। एक दिन फिर वही व्यक्ति आया और बोलामहाराज जी! आप कभी खुश दिखाई नहीं देते। क्या कारण है? संत नानक जीने कहा कि :-ना जाने काल की कर डारे, किस विधि ढ़ल जा पासा वे।जिन्हाते सिर ते मौत खुड़कदी, उन्हानूं केहड़ा हांसा वे।।भावार्थ :-
संत नानक जी ने कहा कि हे भाई! इस मृत्युलोक में सब नाशवानहैं। पता नहीं किसकी जाने की बारी कब आ जाए? इसलिए जिनके सिर पर मौतगर्ज रही हो, उस व्यक्ति को नाचना-गाना, हँसी-मजाक कैसे अच्छा लगेगा? मूर्खया नशे वाला व्यक्ति इस गंदे लोक में खुशी मनाता है। जैसे एक व्यक्ति की पत्नीको विवाह के दस वर्ष पश्चात् पुत्रा हुआ। उसके उत्पन्न होने की खुशी में लड्डूबनाए, बैंड-बाजे बजाए, उधमस उतार दिया। अगले वर्ष जन्म दिन को ही मृत्युहो गई। कहाँ तो जन्मदिन की खुशी की तैयारी थी, कहाँ रोआ-पीटी शुरू हो गई।घर नरक बन गया। अब मना लो खुशी।वह व्यक्ति यह सच्चाई सुनकर काँप गया और बोला कि हे प्रभु! आपकी बातें
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