Guru Right

प्राणी की जीवन की यात्रा जन्म से प्रारम्भ हो जाती है। उसकी मंजिलनिर्धारित होती है। यहाँ इस पवित्रा पुस्तक में मानव जीवन की यात्रा के मार्ग परविस्तारपूर्वक वर्णन है। मानव (स्त्रा/पुरूष) की मंजिल मोक्ष प्राप्ति है। उसके मार्गमें पाप तथा पुण्य कर्मों के गढ्ढ़े तथा काँटे हैं। आप जी को आश्चर्य होगा कि पापकर्म तो बाधक होते हैं, पुण्य तो सुखदाई होते हैं। इनको गढ्ढे़ कहना उचित नहीं।इसका संक्षिप्त वर्णन :-पाप रूपी गढ्ढ़े व काँटे :- मानव जीवन परमात्मा की शास्त्राविधि अनुसारसाधना करके मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्राप्त होता है। पाप कर्म का कष्ट भक्तिमें बाधा करता है। उदाहरण के लिए पाप कर्म के कारण शरीर में रोग हो जाना,पशु धन में तथा फसल में हानि हो जाना। ऋण की वृद्धि करता है। ऋणी व्यक्तिदिन-रात चिंतित रहता है। वह भक्ति नहीं कर पाता। पूर्ण सतगुरू से दीक्षा लेनेके पश्चात् परमेश्वर उस भक्त के उपरोक्त कष्ट समाप्त कर देता है। तब भक्तअपनी भक्ति अधिक श्रद्धा से करने लगता है। परमात्मा पर विश्वास बढ़ता है, दृढ़होता है। परंतु भक्त को परमात्मा के प्रति समर्पित होना चाहिए। जैसे पतिव्रता स्त्राअपने पति के अतिरिक्त किसी अन्य पुरूष को कामपूर्ति (ैमगनंस ैंजपेंबजपवद) केलिए स्वपन में भी नहीं चाहती चाहे कोई कितना ही सुंदर हो। उसका पति अपनीपत्नी को हरसंभव कोशिश करके सर्व सुविधाऐं उपलब्ध करवाता है। विशेष प्रेमकरता है। इसी प्रकार दीक्षा लेने के पश्चात् आत्मा का संयोग परमात्मा से होताहै। गुरू जी आत्मा का विवाह परमात्मा से करवा देता है। यदि वह मानवशरीरधारी आत्मा अपने पति परमेश्वर के प्रति पतिव्रता की तरह समर्पित रहती हैयानि पूर्ण परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी देवी-देवता से मनोकामना की पूर्तिनहीं चाहती है तो उसका पति परमेश्वर उसके जीवन मार्ग में बाधक सब पाप कर्मोंके काँटों को बुहार देता है। उस आत्मा की जीने की राह सुगम व बाधारहित होजाती है। उसको मंजिल सरलता से मिल जाती है। उस आत्मा के लिए परमात्माक्या करता है? उसको संत गरीबदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त ज्ञान कोइस प्रकार बताया है :-गरीब, पतिव्रता जमीं पर, ज्यों-ज्यों धरि है पाँवै।समर्थ झाड़ू देत है, ना काँटा लग जावै।।कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि :-कबीर, साधक के लक्षण कहूँ, रहै ज्यों पतिव्रता नारी।कह कबीर परमात्मा को, लगै आत्मा प्यारी।।पतिव्रता के भक्ति पथ को, आप साफ करे करतार।आन उपासना त्याग दे, सो पतिव्रता पार।।भक्ति करने से पाप नष्ट हो जाते हैं जो भक्ति की राह में रोड़े बनते हैं।

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