जीने की राह

-कबीर, मानुष जन्म पाय कर, नहीं रटैं हरि नाम।जैसे कुंआ जल बिना, बनवाया क्या काम।।भावार्थ :- मानव जीवन में यदि भक्ति नहीं करता तो वह जीवन ऐसा है जैसेसुंदर कुंआ बना रखा है। यदि उसमें जल नहीं है या जल है तो खारा (पीने योग्यनहीं) है, उसका भी नाम भले ही कुंआ है, परंतु गुण कुंए (ॅमसस) वाले नहीं हैं।इसी प्रकार मनुष्य भक्ति नहीं करता तो उसको भी मानव कहते हैं, परंतु मनुष्यवाले गुण नहीं हैं।पूर्व जन्मों में किए शुभ-अशुभ कर्मों तथा भक्ति के कारण कोई स्वस्थ है। वहअचानक रोगी हो जाता है और लाखों रूपये उपचार पर खर्च करके मृत्यु को प्राप्तहो जाता है। कोई जन्म से रोगी होता है, आजीवन कष्ट भोगकर मर जाता है।कोई निर्धन होता है, कोई धनवान ही जन्मता है। किसी के लड़के-लड़की होते हैंतो किसी को संतान प्राप्त ही नहीं होती। किसी को पुत्रा-पुत्रा ही संतान होती है,चाहने पर भी पुत्रा नहीं होता। यह सब पूर्व जन्मों के कर्मों का फल मानव भोगताहै। जब तक पुनः भक्ति प्रारम्भ नहीं करता तो तब तक पूर्व वाले संस्कार ही प्राणीको प्राप्त होते हैं। जिस समय पूर्ण सतगुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा से भक्ति करनेलगता है तो शुभ संस्कारों में वृद्धि होने से दुःख का वक्त सुख में बदलने लग जाता है।

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